पुनर्जागरण का कारण एवं प्रभाव, विशेषता

 

पुनर्जागरण का अर्थ

पुनर्जागरण का कारण एवं प्रभाव,  रिनेसाँ (Renaissance) फ्राँसीसी शब्द है जिसका अर्थ है, ‘पुनर्जागरण’ या ‘पुनर्जन्म’। 14वीं-16वीं शताब्दी के दौरान इटली में और बाद में यूरोप के अन्य भागों में भी नए विचारों का प्रसार हुआ, जिसने मध्ययुगीन यूरोप को धीरे-धीरे आधुनिक यूरोप में परिवर्तित कर दिया। नए विचारों ने सृजनात्मक व्यक्ति की एक नवीन धारणा को जन्म दिया। इस व्यक्ति में भगवान की इच्छा के बगैर अपना भाग्य बदलने की ताकत थी। इस विचार ने मध्ययुगीन धर्म केंद्रित चिंतन को ध्वस्त कर दिया और नए सामाजिक चिंतन और राजनीतिक कार्रवाई को गति प्रदान की।

जैकब बुर्कहार्ट ने 1860 में अपनी पुस्तक ‘सिविलाइजेशन ऑफ द रिनेसाँ इन इटली‘ में ‘पुनर्जागरण’ और ‘मानववाद’ की प्रभावशाली धारणाओं को सूत्रबद्ध किया है। पुनर्जागरण न केवल नए मौलिक विचारों को आत्मसात् करने से संबंधित था, बल्कि उसने नई भौगोलिक खोजों को भी जन्म दिया।

यूरोप में विकसित इस नई चेतना से लैस होकर वहाँ के नए शासकों ने भौगोलिक खोजों के तहत नए महादेश अमेरिका की खोज कर डाली और भारत के लिये नए सामुद्रिक मार्ग ढूँढ़ निकाले।

 

 

पुनर्जागरण के कारण

लगभग 200 वर्षों के सम्मिलित प्रयासों ने यूरोपीय पुनर्जागरण को घटित किया, जिसके लिये निम्न कारण कमोबेश उत्तरदायी थे-

 

धर्मयुद्ध

• धर्मयुद्ध या क्रूसेड ईसाई धर्म के पवित्र स्थल येरूशलम पर अधिकार को लेकर ईसाइयों और तुर्कों के मध्य 200 वर्ष तक चला। 11वीं से 13वीं शताब्दी में हुए इस युद्ध ने यूरोप में नए विचारों को जन्म दिया। युद्ध के माध्यम से पूर्वी देशों में हुए संपर्क ने यूरोपियों को तर्कशक्ति, प्रयोग और वैज्ञानिक खोजों के साथ-साथ भौगोलिक खोजों के लिये भी प्रोत्साहित किया। धर्मयुद्ध के परिणामस्वरूप ही अरबी अंक पद्धति, बीजगणित, कागज आदि से यूरोपीय परिचित हुए।

धर्मयुद्धों में मिली पराजय से पोप एवं चर्च में अंधविश्वास में कमी आई और यूरोपीय लोग नए ज्ञान-विज्ञान को सीखने के लिये उद्यत हुए।

 

सामंतवाद का पतन

धर्मयुद्धों में भाग लेने से सामंतों की शक्ति क्षीण हो गई।

दूसरी तरफ नए विचारों और पूर्व के साथ बढ़ते वाणिज्य-व्यापा ने मध्य वर्ग का विकास किया, जिसने सामंतवाद का भयंकर विरोध इसलिये किया, क्योंकि उनके द्वारा ली जाने वाली चुंगी से व्यापार बधित होता था तथा वस्तुएँ महँगी।  मध्य वर्ग ने सामंतों के छोटे-छोटे राज्यों की अपेक्षा बड़े राष्ट्र की कल्पना की और राजा को अपना सहयोग दिया, जिसने सामंतों को परास्त कर व्यापार के लिये एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्र उपलब्ध कराया, जिसमें चुंगी की बाधा नगण्य थी।

 

व्यापार-वाणिज्य का विकास

धर्मयुद्धों के कारण यूरोपीय व्यापारियों का पूर्वी देशों के साथ व्यापार संबंध कायम हुआ। इससे यूरोपीय व्यापारी नए विचारों से न केवल अवगत हुए, बल्कि उन्होंने यूरोप में उसे प्रचारित भी किया। व्यापारिक समृद्धि ने मध्ययुगीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नगरीय अर्थव्यवस्था में बदलना आरंभ किया और नए नगरों का विकास हुआ-वेनिस, फ्लोरेंस, मिलान, लिस्बन, न्यूरेम्बर्ग आदि।

वृद्धिमान व्यापार ने पूंजीपति वर्ग के विकास में सहयोग दिया। जिसने सामंतों को मिले विशेषाधिकारों की खुद के लिये मांग की और सामंतों के साथ होने वाले संघर्ष में राजा का साथ दिया, जबकि चर्च ने सूद के विरोध के कारण सामंतों का समर्थन किया। परिणामस्वरूप मध्य वर्ग चर्च विरोधी भी हो गया। पूंजीपति वर्ग ने इसके अलावा विद्वानों को भी प्रश्रय देकर नए ज्ञान एवं कला-साहित्य को प्रचारित-प्रसारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

 

कुस्तुनतुनिया का पतन

तुकों द्वारा 1453 ई. में कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया गया, जिससे वहाँ के लेखक, वैज्ञानिक, दार्शनिक और कलाकार यूरोप के अन्य देशों इटली, इंग्लैंड, फ्राँस, जर्मनी आदि में पलायन कर गए। वे अपने साथ ज्ञान-विज्ञान की प्राचीन पांडुलिपियाँ भी ले गए। अकेला कार्डिनल बेसारिओन 800 पांडुलिपियाँ लेकर इटली पहुंचा था। उनके आगमन से यूरोप में नए ज्ञान-विज्ञान का प्रसार हुआ और पुनर्जागरण संभव हो सका।

 

भौगोलिक खोजें

कुस्तुनतुनिया पर तुकों के अधिकार के पश्चात् पूर्वी देशों के साथ यूरोप का स्थल मार्ग अवरुद्ध हो गया। परिणामस्वरूप मसालों के व्यापार के लिये नए सामुद्रिक मागों की खोज आवश्यक हो गई। संयोग से कंपास की खोज के कारण समुद्र में दिशाज्ञान संभव हो गया था। इसी क्रम में बड़े जहाजों के निर्माण ने भी कई-कई दिन तक सामुद्रिक यात्रा को संभव बनाया। इस सबके फलस्वरूप 1488 में बार्थोलोम्यू डियाज ने अफ्रीका के आखिरी छोर केप ऑफ गुड होप तक यात्रा की। कोलंबस ने 1492 में ईस्टइंडीज और अमेरिका महादेश को ढूंढ़ निकाला। 1498 में वास्कोडिगामा केप ऑफ गुड होप का चक्कर लगाता हुआ भारत के कालीकट पहुँचा। भौगोलिक खोजों ने भी यूरोप को न केवल व्यापारिक समृद्धि प्रदान की बल्कि नए ज्ञान-विज्ञान से भी लैस किया।

 

प्रिंटिंग प्रेस

यूरोप के लोगों ने अरबों से कागज निर्माण की कला सीखी। इसके पश्चात् जर्मनी के जॉन गुटेनबर्ग ने 15वीं शताब्दी के मध्य में प्रिंटिंग प्रेस (छापाखाना) का आविष्कार कर डाला। इस यंत्र ने धर्मग्रंथों के साथ-साथ अन्य पुस्तकों को कम समय में बड़ी मात्रा में छपाई कर लोगों तक पहुँचाया। इससे ज्ञान पर विशिष्ट लोगों का एकाधिकार समाप्त हो गया और अब सामान्य लोग भी पढ़-लिखकर सोच-विचार करने लगे। अब ‘पुस्तकों में ऐसा लिखा है’ कहकर किसी को गुमराह नहीं किया जा सकता था। पादरी और धर्माचार्यों का ज्ञान पर वर्चस्व टूट गया। इसने वैचारिक क्रांति को तेजी से प्रवाहित कर दिया। परिणामस्वरूप पुनर्जागरण की प्रक्रिया तीव्र हो गई।

 

धर्म संबंधी नए विचार

मध्ययुगीन यूरोपीय लोग चर्च और कर्मकांड से बँधे हुए थे। चर्च और पोप के आदेशों का पालन करना ही जीवन का उद्देश्य समझते थे, ताकि मृत्यु के पश्चात् सद्गति की प्राप्ति हो, लेकिन पुनर्जागरण के विचारकों ने पोप और चर्च के आदेशों के स्थान पर बाइबिल की मूल शिक्षाओं और उनके पालन पर जोर दिया। उन्होंने मृत्यु पश्चात् जीवन से हटकर मृत्यु पूर्व जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उनकी शिक्षाओं ने आगे चलकर धर्म सुधार का मार्ग प्रशस्त किया।

 

शिक्षा एवं साहित्य

नए विचारों और ज्ञान के स्थायी प्रचार के लिये यूरोप के नए नगरों में विद्यालय और विश्वविद्यालय खोले गए। कार्डोवा विश्वविद्यालय न केवल स्पेन में बल्कि पूरे यूरोप में नए विचारों के प्रसार का केंद्र बन गया। दांते, पेट्रार्क, मूर जैसे विद्वान साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से मध्यकालीन जकड़बंदी को ढीला कर दिया और प्राचीन लैटिन एवं यूनानी ग्रंथों का स्थानीय भाषा में अनुवाद कर प्राचीन विचारों से लोगों को अवगत कराया। नये विश्व की खोज ने यूरोपवासियों को बेकन के उदार कथन “सत्य सत्ता की नहीं वरन् समय की पुत्री है, की शिक्षा दी” समय के साथ उ‌द्घाटित होता चला गया।

 

प्रगतिशील राजाओं, पोप एवं मध्य वर्ग का योगदान

राजाओं, पोप और मध्य वर्ग ने विचारकों एवं कलाकारों को संरक्षण । प्रदान किया। फ्राँस और इंग्लैंड के राजाओं ने उन्हें अपने दरबार में स्थान दिया। पोप ने चर्च के चित्रण में उनसे मदद ली। इटली के प्रसिद्ध मेडिसी परिवार ने भी कलाकारों को संरक्षण दिया। इससे कलाकार आजीविका की चिंताओं से मुक्त होकर अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन कर पाए।

 

 

पुनर्जागरण इटली में ही क्यों प्रारंभ हुआ?

  • 14वीं-15वीं शताब्दी के दौरान इटली यूरोप और पूर्व के देशों के मध्य होने वाले व्यापार में बिचौलिये की भूमिका निभा रहा था। फलस्वरूप यहाँ नगर राज्यों मिलान, वेनिस, फ्लोरेंस, नेपल्स और चर्च का विकास न हुआ। ये सभी नगर सामंती नियंत्रण से मुक्त थे, जहाँ कुस्तुनतुनिया के • पतन के पश्चात् अधिकांश विद्वान आकार स्थायी रूप से बस गए। इन विद्वानों ने मुक्त चिंतन और साहस की भावना का प्रसार किया।
  • पूरे यूरोप में इटली ही ऐसा देश था, जो स्वयं को प्राचीन रोमन साम्राज्य का उत्तराधिकारी समझता था, क्योंकि रोम इटली में ही उपस्थित था। इटली में हर जगह रोम का वैभव दिखाई देता था। रोमन पुरावशेषों के रूप में सड़कें, स्मारक और प्राचीन पांडुलिपियाँ रोमन के अतीत के साथ इतालवियों के संबंधों को मजबूत बनाते थे।
  • इटली के नगर राज्यों में स्वतंत्रता का माहौल था। यहाँ का प्राचीनतम विश्वविद्यालय बोलोनिया में कानून का अध्ययन किया जाता था। रूढ़िवाद की जड़ें इटली में कभी जम नहीं पाईं।
  • इटली के पूर्व में स्थित बाइजेंटाइन और सारसेनिक सभ्यता के साथ इटली के जीवंत संबंध थे, जिनके पास अभी भी बहुत प्राचीन संपदा और प्रतिष्ठा शेष थी। इन संबंधों का इटली के सांस्कृतिक जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
  • इटली के नगर राज्यों में स्वतंत्रता का माहौल था। यहाँ का प्राचीनतम विश्वविद्यालय बोलोनिया में कानून का अध्ययन किया जाता था। रूढ़िवाद की जड़ें इटली में कभी जम नहीं पाईं। इटली के पूर्व में स्थित बाइजेंटाइन और सारसेनिक सभ्यता के साथ इटली के जीवंत संबंध थे, जिनके पास अभी भी बहुत प्राचीन संपदा और प्रतिष्ठा शेष थी। इन संबंधों का इटली के सांस्कृतिक जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
  • इसके अलावा समृद्ध व्यापारियों ने नगरों की राजनीति में भी प्रभावी हस्तक्षेप आरंभ किया था। वे सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे। यह वाणिज्य और व्यापार की बढ़ती ताकत थी, जिसने निश्चित पदानुक्रम आधारित सामंती व्यवस्था को पतन के कार्य पर अग्रसर कर दिया।
  • पोप और कुलीन वर्ग ने भी कला और नए विचारों को संरक्षण देकर पुनर्जागरण को इटली में संभव बनाया। माइकल एंजेलो तथा राफेल ने पोप के संरक्षण में ही अपनी कृतियाँ तैयार कीं इस प्रकार इटली में पुनर्जागरण पुष्पित पल्लवित हुआ और धीमे-धीमे पूरे यूरोप को उसने अपने आगोश में ले लिया।

 

 

पुनर्जागरण की विशेषताएँ

 

मानवतावाद

  • पुनर्जागरण की सर्वप्रमुख विशेषता ‘मानवतावाद’ है। यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमें मानव का गुणगान, उसकी मान-मर्यादा पर बल, उसकी सूजन शक्ति में आस्था व्यक्त की जाती है। इसके अलावा व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके अहरणीय अधिकारों को अभिव्यक्त किया जाता है।
  • मानवतावाद ने धार्मिक तपस्या का विरोध किया और मानव के भोग-विलास के अधिकार तथा सांसारिक इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति किये जाने का जोरदार समर्थन किया। इसने दैवी तथा पारलौकिक के स्थान पर मानवीय तथा इहलौकिक को गौरवान्वित किया। मानवतावाद को पुनर्जागरण की ‘आत्मा’ इसीलिये कहा जाता है।
  • मानवतावाद के अंतर्गत मानव के अध्ययन पर बल दिया गया। पिको डेला मिरांदोला ने अपने ‘लेखन में पुनर्जागरण के इस विश्वास को अभिव्यक्त किया कि ‘मानव में क्षमताएँ हैं।’ उन्होंने लिखा- ‘आदमी से अधिक अद्भुत कुछ भी नहीं है। मानव एक महान चमत्कार है।’
  • मानव को उसकी चिंतन-शक्ति और बुद्धि के कारण समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ घोषित किया गया। मनुष्य को इस मामले में भाग्यशाली माना गया कि उसकी क्षमताओं को ईश्वर ने किसी सीमा में नहीं बांधा है। केवल मानव को ही अपनी इच्छानुसार चुनाव करने की स्वतंत्रता मिली हुई है।
  • मानव जीवन को इस प्रकार महत्त्व दिये जाने के कारण साहित्य और इतिहास अध्ययन के प्रमुख विषय बन गए, जिसके फलस्वरूप इन्हें मानविकी विषय कहा जाने लगा। इसका उद्देश्य प्रमुखतः मानव के इस संसार के क्रियाकलापों को समझना था, न कि मृत्यु के उपरांत जीवन को।
  • मानवता की इस नई भावना की अभिव्यक्ति नई कला और नए साहित्य में हुई। सर्वप्रथम पेट्रार्क की रचनाओं में स्पष्ट रूप से यह घोषणा सुनने को मिली कि अनेक सदियों के बर्बर अंधकार के बाद हम सच्ची सभ्यता का पुनरुत्थान करने में गंभीरता से जुटे हैं।

 

नई शिक्षा अथवा नई विद्या

पेट्रार्क का सपना था कि ईसाई समाज का सांस्कृतिक और नैतिक पुनरुत्थान होना चाहिये। उसके अनुसार इसका आधार तर्क और दर्शनशास्त्र होंगे। इसके लिये उसने शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन करने का सुझाव दिया। उसने और अन्य मानवतावादियों ने गंभीर नैतिक शिक्षा देने वाले मध्ययुगीन पाठ्यक्रम की आलोचना की। उनके अनुसार नैतिक शिक्षा की कोई भी प्रासंगिकता इतालवी शहरी नागरिकों के जीवन में नहीं है।

लियोनार्डो खूनी के अनुसार पेट्रार्क ने ही सर्वप्रथम शिक्षा के ऐसे कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई जिसके जरिये शास्त्रीय आदर्शों को हासिल किया जाना था। इसमें व्याकरण, तर्क, कविता, प्राचीन नीति और इतिहास शामिल थे। मानवतावादियों ने पुरानी लैटिन और ग्रीक भाषाएँ सीखने पर जोर दिया, ताकि प्राचीन लेखकों को उनके मध्यकालीन भाष्यों को दरकिनार करते हुए पढ़ा जा सके।

 

धर्मनिरपेक्षता

पुनर्जागरण की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह थी कि लोगों के जीवन से धर्म का नियंत्रण कमजोर होना आरंभ हो गया। पुनर्जागरण के विचारकों ने मध्ययुगीन धर्म की बंदिशों को मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने गरीबी की खिल्ली उड़ाई और धनसंग्रह को मानव का एक गुण बताया, जबकि रूढ़िवादी ईसाइयत सूदखोरी की भर्त्सना करती है, मानववादी लेखकों ने सूदखोरी को भी जायज बताया, जिससे व्यापार में प्रगति हो सके। उपरोक्त सभी विचार धनाढ्य क्गों के जीवन-मूल्य थे।

 

व्यक्तिवाद

यह माना गया कि व्यक्ति विवेकसम्मत फैसले कर सकता है और गलत कदम भी उठा सकता है। मनुष्य की परिभाषा के तहत उसे गुण और अवगुण का मिश्रण माना गया। इतिहासकार बर्कहार्ट ने इसी नई चेतना के एक पहलू के बतौर व्यक्ति के विकास को देखा था। उन्होंने इसके लिये इतालवी नगर राज्यों के भौतिक जीवन और राजनीतिक संस्कृति को जिम्मेदार माना था। इसके तहत व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसको निजी उपलब्धियों को मान्यता दी गई। मैकियावली जैसे लोगों का कहना था कि प्रतिष्ठा की चाहत पूरी तरह मानवीय गुष्ण है। इस काल के चित्रकारों एवं साहित्यकारों ने इसीलिये हस्ताक्षरयुक्त कृतियाँ प्रस्तुत की।

 

मध्यवर्गीय चेतना

इटली की आर्थिक समृद्धि और नगरीय समाज ने पुनर्जागरण की चेतना को जन्म दिया। इस नगरीय समाज में धनाढ्य व्यक्ति, बैंकर, कलाकार, वकील आदि शामिल थे, जो मध्ययुगीन सामंती सामाजिक व्यवस्था से अलग-थलग थे। इन लोगों ने मिलकर मध्यवर्गीय चेतना का विकास किया। इन्होंने सामंती बंद समाज व्यवस्था की आलोचना की और व्यक्ति स्वतंत्रता पर आधारित नवीन समाज व्यवस्था का समर्थन किया।

 

छपाई

प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के साथ पुनर्जागरण का विचार तेज्जी से यूरोप में फैला। प्रेस ने प्राचीन शास्त्रीय पुस्तकों के मानक संस्करण छापे। अब किताबें कम लागत में बनने लगीं, हस्तलिखित पुस्तकों की अपेक्षा बेहद सस्ती और बड़ी मात्रा में। इस प्रकार छपी हुई किताबों के माध्यम से विचार, अभिमत और सूचनाएँ अभूतपूर्व तेजी से व्यापक स्तर पर पहुँचने लगीं। 15वीं सदी के अंत में आल्पस को पार करते हुए इटली का पुनर्जागरण और मानवतावाद तेजी से पूरे यूरोप में फैला, जिसका प्रमुख कारण यह था कि छपी हुई किताबें वितरित हो रही थीं।

 

पुनर्जागरण का प्रभाव

 

आर्थिक प्रभाव

मध्ययुगीन अर्थव्यवस्था गिल्ड अथवा श्रेणी व्यवस्था पर आधारित थी। पुनर्जागरण काल में इस व्यवस्था में बदलाव आया और अब अर्थव्यवस्था पूंजी पर निर्भर होकर पूंजीवादी बन गई। इस व्यवस्था में उत्पादन के साधन बदले जिसके तहत अब व्यापारी कच्चा माल देकर अपने लिये उत्पादन कराने लगे, जिससे व्यापार का क्षेत्र बढ़ा। लोग नगरों की ओर आकर्षित होने लगे, धन-संचय बढ़ा। इसके फलस्वरूप स्टॉक कंपनियों और बैंकों का जन्म हुआ। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ा, वैसे-वैसे श्रम की खरीद-बिक्री आरंभ हुई। अब अर्थव्यवस्था औद्योगिक स्वरूप धारण करने लगी। इस तरह औद्योगिक क्रांति घटित हुई और समाज में दो नए वर्ग उद्योगपति और मजदूर (सर्वहारा) का जन्म हुआ।

 

राजनीतिक प्रभाव

मध्ययुगीन यूरोपीय राजनीति सामंतवाद पर आधारित थी। पुनर्जागरण के विचारकों ने एक राष्ट्र-राज्य की कल्पना की और सभी शक्तियों का केंद्र राजा को माना। हॉब्स राज्य की सार्वभौमिकता और राज्य के सर्वोपरि नियंत्रण पर विश्वास रखता था। यह पुनर्जागरण काल का इंग्लैंड का एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक चिंतक था। युद्ध तकनीक में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। अब बारूद का प्रयोग कर सामंतों के किलों को ध्वस्त करना आसान हो गया।

 

सामाजिक प्रभाव

मध्ययुगीन यूरोपीय समाज कुलीनता के आधार पर विभाजित था। राजा, सामंत और पादरी कुलीन और विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग थे, शेष अकुलीन और विशेषाधिकार से वंचित थे। पुनर्जागरण ने नागरिक जीवन

को महत्त्व प्रदान किया। पूंजीवादी आर्थिक क्रियाकलापों ने मध्यवर्ग को जन्म दिया, जो विशेषाधिकारों का विरोधी था और अपने लिये सम्मान की मांग करता था। व्यक्ति का महत्त्व बढ़ा तथा व्यक्तिवादी चिंतन ने अमूर्त सत्ता चर्च के प्रभाव को चुनौती दी। पुनर्जागरण के विचारकों ने व्यक्ति को चर्च से मुक्त होने पर बल दिया। विद्यमान सामाजिक विषमताओं पर गौर किया गया, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ा। नई विद्या के प्रसार से शिक्षा और जागरूकता का प्रसार

 

धार्मिक प्रभाव

पुनर्जागरण के तर्क और विवेक के अधीन मध्ययुगीन धार्मिक स्थिति की आलोचना भी की गई। जैसे-जैसे व्यक्तिवाद का विचार आगे बढ़ा, धर्म का प्रभाव व्यक्ति पर कमजोर होने लगा। दांते, इरास्मस, टॉमस मूर से लेकर वोल्टेयर तक चर्च में परिवर्तन की मांग करने लगे।

 

सांस्कृतिक प्रभाव

  • साहित्य इस परिवर्तन की आवास को मार्टिन लूथर ने बुलंद किया और कैथोलिक चर्च से अलग प्रोटेस्टेंट की स्थापना कर दी। इसके फलस्वरूप कैथोलिक चर्च में भी धर्म सुधार हुआ।
  • मध्यकालीन यूरोपीय साहित्य अधिकांशतया पादरियों द्वारा लैटिन भाषा में लिखा जाता था। ऐसे साहित्य को न तो जनता पढ़ सकती थी और न ही उसमें किसी प्रकार का जन-सरोकार था। पुनर्जागरण के लेखकों एवं विचारकों ने स्थानीय भाषा में लिखना आरंभ किया, ताकि आम जनता उसे आसानी से पढ़ और समझ सके।अपनी ‘कविता’ के माध्यम से दांते, अपनी ‘जीवनियों’ के माध्यम से पैट्रार्क और अपनी ‘कथाओं’ के माध्यम से बुकसियो ने इतालवी भाषा को साहित्य की भाषा में ढाल दिया।
  • इटली के वैचारिक साहित्य को नया आयाम तब मिला, जब गिसिआर्दिनी ने इतालवी भाषा में इतिहास लिखा, विसिनों ने प्लेटो का अध्ययन आरंभ किया और मैकियावेली ने राजनीतिक विचार व्यक्त किया। आधुनिक राजनीति का चाणक्य मैकियावेली को माना जाता है जिसका यथार्थवादी दृष्टिकोण यह था कि इच्छित साध्य के लिये किसी भी साधन का प्रयोग उचित है। फिशर उसे ‘ सत्ता की राजनीति का कलाकार’ कहते हैं

 

 

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