अमेरिकी क्रांति के कारण और परिणाम

 

अमेरिकी क्रांति के कारण और परिणाम

 

क्रांति से पूर्व अमेरिका की स्थिति

अमेरिकी क्रांति विश्व इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह पूरी तरह से एक राजनीतिक क्रांति थी जो न तो औद्योगिक क्रांति की तरह बुनियादी महत्त्व की थी और न ही भविष्य में होने वाली उस फ्राँसीसी क्रांति के ही समान थी, जिसने यूरोपीय समाज की नींव को ही हिला डाला। लेकिन फिर भी अमेरिका में होने वाला यह परिवर्तन बड़े राजनीतिक महत्त्व का था। उस समय जो उपनिवेश आजाद हुए वे ही वर्तमान में दुनिया के सबसे शक्तिशाली, सर्वाधिक अमीर और उद्योगों की दृष्टि से सर्वाधिक समृद्ध देश बनकर उभरे हैं। 16वीं सदी के आरंभ से ही अमेरिका में यूरोपीय देशों द्वारा उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया आरंभ कर दी गई थी यद्यपि इसका आरंभ स्पेन द्वारा किया गया किंतु फ्राँस, हॉलैंड एवं ब्रिटेन जैसे देश भी

उपनिवेशीकरण की इस प्रक्रिया में पीछे न रहे। 1588 ई. में स्पेन और ब्रिटेन के मध्य हुए नौसैनिक संघर्ष में इंग्लैंड की विजय के पश्चात् इंग्लैंड ने अमेरिका में औपनिवेशिक बस्तियाँ बसानी प्रारंभ कर दीं। 18वीं शताब्दी तक ब्रिटिश ने फ्राँसीसियों को उत्तरी अमेरिका एवं कनाडा के पूर्वी तट से खदेड़ दिया तथा अटलांटिक महासागर के तट पर 13 बस्तियाँ- न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, न्यू हैंपशायर, मैसाचुसेट्स, रोड्स आइलैंड, मेरीलैण्ड, उत्तरी कैरोलिना, दक्षिणी कैरोलिना, वर्जीनिया, जॉर्जिया, कनेक्टिट, पेनसिलवेनिया तथा डेलावेयर स्थापित कीं। भौगोलिक दृष्टि से अमेरिकी बस्तियों को 3 भागों में बांटा जा सकता था उत्तरी भाग, मध्य भाग एवं दक्षिणी भाग।

उत्तरी भाग में मैसाचुसेट्स, रोडस आइलैंड तथ न्यू हैंपशायर शामिल थे। यह एक पहाड़ी एवं बर्फीला क्षेत्र था। अतः कृषि के लिये अधिक उपयुक्त नहीं था एवं यहाँ से लकड़ी एवं मछली बहुतायत में प्राप्त की जाती थीं। मध्य भाग में न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी एवं मेरीलैंड जैसे क्षेत्र आते थे। यह औद्योगिक दृष्टि से एक विकसित क्षेत्र था तथा शराब एवं चीनी जैसे उद्योग यहाँ विकसित अवस्था में थे।  

 

 

दक्षिणी भाग में जॉर्जिया, वर्जीनिया, उत्तरी कैरोलिना एवं दक्षिणी कैरोलिना आदि क्षेत्र सम्मिलित थे। यहाँ की जलवायु अपेक्षाकृत गर्म एवं समतल भूमि होने के कारण यह क्षेत्र कृषि के लिये अत्यधिक उपयुक्त था। यहाँ बड़े फार्म बनाकर कृषि की जाती थी। बागानी फसलों के साथ गन्ना, तंबाकू, कपास, अनाज आदि का यहाँ व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता था।

जनसांख्यिकीय आधार पर अमेरिकी समाज विभिन्न देशों का तिनिधित्व करने लगा था। यहाँ के उपनिवेशों में 90 प्रतिशत लोग बटिश थे, तो 10 प्रतिशत लोग डच, फ्राँसीसी, पुर्तगाली एवं जर्मन थे। – विभिन्न देशों के लोग यहाँ कई कारणों से आकर बस गए थे।

 

 

अमेरिकी में यूरोपियों के बसने के कारण

अमेरिका को विभिन्न यूरोपीय देशों फ्राँस, जर्मनी, हॉलैंड, ब्रिटेन बादि के नागरिकों द्वारा अपने निवास स्थान के रूप में चुना गया जिसके मूल में कई कारण विद्यमान हैं। अमेरिका में यूरोपियों के बसने के कारणों को हम निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत रेखांकित कर सकते हैं-

 

धार्मिक कारक

यूरोप में होने वाले धार्मिक सुधारों के फलस्वरूप प्रोटेस्टेंट आंदोलन का प्रसार हो रहा था जिसके फलस्वरूप अनेक धार्मिक संघों की स्थापना हुई। मैसाचुसेट्स के समीप प्लिमथ उपनिवेश की स्थापना उन प्यूरिटन अंग्रेजों द्वारा ही की गई थी जो अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के लिये जेम्स प्रथम के काल से ही इंग्लैंड छोड़कर अमेरिका में आकर बस गए थे। यही नहीं, क्वेकर संप्रदाय के अनुयायियों, विलियम पेन तथा उनके सहयोगियों द्वारा धार्मिक दृष्टि से ही पेनसिलवेनिया शहर स्थापित किया गया था। इसी प्रकार न्यू हैंपशायर से लेकर जॉर्जिया तक जितनी भी बस्तियाँ स्थापित हुई उनकी पृष्ठभूमि में धार्मिक असंतोष का कुछ-न-कुछ तत्त्व अवश्य शामिल था।

 

 

आर्थिक कारक

इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति को आगे बढ़ाने के लिये कच्चे माल की प्राप्ति तथा तैयार माल को बेचने हेतु बाजार की आवश्यकता थी, व्यापारी वर्ग को भी अधिकाधिक लाभ की आकांक्षा थी और अमेरिका इन सभी हितों की पूर्ति करता हुआ नजर आ रहा था। इसके साथ ही ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कारण स्वामित्व के नियमों में भी बदलाव हो रहा था, जिसके फलस्वरूप वहाँ (ब्रिटेन में) भूमिहीन कृषकों, भिखारियों एवं अपराधियों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि होने लगी थी। अतः ब्रिटिश सरकार के द्वारा इन्हें अमेरिका भेजना उचित समझा गया। यूरोप में निरंतर होने वाले युद्धों ने भी लोगों का मोह भंग किया और वे इस व्यापक जनसंहार से दूर शांतिपूर्वक जीवन जीने की आकांक्षा में अमेरिका की ओर प्रव्रजन के लिये प्रेरित हुए। यूरोप में निर्धन लोगों को दास बनाकर बेचे जाने वाले व्यापार और दासों की दुर्दशा ने भी गरीब एवं निर्धन लोगों को पलायन करने के लिये विवश किया।

 

राजनीतिक कारक

यूरोपीय लोगों के अमेरिका में बसने का एक प्रमुख कारण राजनीतिक भी था। उदाहरणस्वरूप, स्टुअर्ट वंश के समर्थक चार्ल्स प्रथम के शासनकाल में हुए गृहयुद्ध में पराजित होकर अमेरिका चले गए तथा जर्मनी में शासकों की निरंकुशता से पीड़ित लोग अमेरिका में आकर बसने लगे। इस प्रकार अमेरिकी समाज का निर्माण भूमिहीन किसानों, धार्मिक स्वतंत्रता चाहने वाले व्यक्तियों, आर्थिक लाभ के आकांक्षी व्यवसायी वर्ग के आकर बसने से हुआ।

इस प्रकार अमेरिका में एक मिश्रित संस्कृति का उदय हुआ। यहाँ आकर बसने वाले लोगों के धार्मिक-सामाजिक संस्कार अपने मातृदेश से भिन्न होते गए और आपस में इनके रीति-रिवाजों, शासन-संगठन एवं रहन-सहन में एकता स्थापित होती गई। परिणामस्वरूप यहाँ लोकतांत्रिक समाज के निर्माण की भावना प्रबल होने लगी जो कि आगे चलकर अमेरिकी क्रांति का एक प्रमुख कारण भी बनी

 

 

 

अमेरिकी क्रांति के कारण

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख कारण ब्रिटेन तथा अमेरिका आधुनिक राजनीति का उद्‌गम के मध्य मौलिक हितों का टकराव था, किंतु इस टकराव में केवल आर्थिक कारक ही नहीं बल्कि इसका सरोकार तो राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक व्यवस्था से भी था। लंबे समय तक स्थानीय स्वायत्तता का अनुभव, संप्रभुता की आकांक्षा तथा संवैधानिक मुद्दों आदि कारकों ने मिलकर अमेरिकी क्रांति को जन्म दिया।

 

अमेरिकी क्रांति के प्रमुख कारणों को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-

 

समाज की स्वतंत्र एवं स्वच्छंद चेतना

अमेरिकी समाज समाजवादी, जनतांत्रिक शासन व्यवस्था एवं स्वतंत्रता की भावना पर विकसित हुआ था, जिसके फलस्वरूप अमेरिका में बसने वाले आप्रवासी इंग्लैंड के नागरिकों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता प्रेमी थे। अमेरिकी उपनिवेशों में प्रारंभ से ही स्वशासन की व्यवस्था विद्यमान थी, जो समय के साथ निरंतर विकसित होती गई। इसी प्रकार अमेरिकी समाज की एक विशिष्ट विशेषता थी सामंत वर्ग की अनुपस्थिति के साथ ही रूढ़िवादिता तथा कृत्रिमता का अभाव, जबकि ब्रिटिश समाज उपर्युक्त सभी कुरीतियों का शिकार था। अतः रूढ़िवादी (इंग्लैंड) और प्रगतिशील (अमेरिका) समाज के मध्य समन्वय अत्यंत दुष्कर था।

 

दोषपूर्ण शासन व्यवस्था

उपनिवेशों में बसने वाले अंग्रेज इंग्लैंड की संस्थाएँ एवं मान्यताएँ भी अपने साथ लेकर आए थे। ब्रिटेन की सरकार औपनिवेशक शासन को नियंत्रित करने के लिये गवर्नर नियुक्त करती थी। गवर्नर विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति होता था। उसे शासन व्यवस्था में सहायता प्रदान करने के लिये एक कार्यकारिणी समिति होती थी, जिसके सदस्यों का मनोनयन ब्रिटिश क्राउन द्वारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त एक विधायक सदन/ असेंबली होती थी, जिसमें जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते थे। इस सदन को कर लगाने, अधिकारियों का वेतन तय करने तथा कानून बनाने का अधिकार प्राप्त था किंतु गवर्नर को कानूनों को स्वीकार अथवा रद्द करने के पूर्ण अधिकार थे। अमेरिकी कार्यकारिणी एवं व्यवस्थापिका में भी निरंतर संघर्ष होता रहता था। उपनिवेश के निवासी व्यवस्थापिका सभा को सर्वशक्तिशाली संस्था मानते थे, लेकिन ब्रिटेन की सरकार उसे अधीनस्थ एवं स्थानीय संस्था मानती थी। इसी प्रकार राजनीतिक अधिकारों से भी उपनिवेशवासियों को वंचित रखा जाना एक बड़ा मुद्दा था, साथ ही महत्त्वपूर्ण पदों पर सिर्फ अंग्रेजों की नियुक्ति किये जाने से उपनिवेशों की जनता का असंतोष निरंतर बढ़ता ही जा रहा था।

 

ब्रिटिश सरकार का बढ़ता हस्तक्षेप

प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार द्वारा उपनिवेशों की स्वच्छंदता एवं स्वशासन में हस्तक्षेप नहीं किया गया। वस्तुतः 17वीं सदी के प्रारंभ से रक्तहीन वंक्रांति, 1688 ई. (लगभग 85 वर्षों) तक राजतंत्र और संसद के बीच कका संघर्ष निरंतर जारी था, जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश राजनीतिज्ञों को र उपनिवेशों के विषय में विचार करने का समय ही नहीं मिल सका। इसके अतिरिक्त तत्कालीन इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार  व्यापार-वाणिज्य था। अतः कच्चे माल की आपूर्ति तथा तैयार माल के लिये बाज़ार हेतु वह उपनिवेशों पर ही निर्भर था। फलतः उपनिवेशों के जीवन में ब्रिटेन ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। परिणामस्वरूप उपनिवेशी लोग भी स्वयं को ब्रिटिश सत्ता के अधीन मानने को तैयार न थे, किंतु जब आगे चलकर सरकार ने विभिन्न ‘कर’ लगाकर उन्हें सख्ती से वसूलना चाहा तो उपनिवेशों में असंतोष का भाव और भी गहरा गया तथा यही आगे चलकर क्रांति की ज्वाला को भड़काने वाली चिनगारी सिद्ध हुआ

 

सप्तवर्षीय युद्ध में फ्राँस की पराजय

उत्तरी अमेरिका में क्यूबेक से लेकर मिसीसिपी घाटी तक फ्राँसीसीउपनिवेश फैले हुए थे। इस क्षेत्र में फ्राँस एवं ब्रिटेन के हितों के टकराव से ही सप्तवर्षीय युद्ध का जन्म हुआ। 1756-63 तक ब्रिटेन एवं फ्राँस के बीच चले इस सप्तवर्षीय युद्ध में इंग्लैंड विजयी रहा तथा कनाडा स्थित फ्राँसीसी बस्तियों पर उसका अधिकार हो गया। इस युद्ध ने अमेरिकियों में आत्मविश्वास की भावना तो पैदा की ही, साथ ही फ्राँस किन की पराजय ने उत्तर दिशा से फ्राँस के आक्रमण के भय को भी उनके मन से निकाल फेंका और सुरक्षात्मक दृष्टि से उपनिवेशों की इंग्लैंड पर निर्भरता समाप्त हो गई।

सप्तवर्षीय युद्ध का एक अन्य महत्त्वपूर्ण परिणाम यह रहा कि अब उत्तरी अमेरिका में मिसीसिपी नदी से लेकर अलेघनी पर्वतमाला तक का व्यापक क्षेत्र इंग्लैंड के नियंत्रण में आ गया। अतः उपनिवेशवासी अब अपनी सीमाओं का विस्तार पश्चिम की ओर चाहते थे। इसी क्रम में उपनिवेशवासियों ने यहाँ के मूल निवासी रेड इंडियंस को खदेड़ना चाहा जिसने यहाँ संघर्ष को जन्म दिया। परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने 1763 ब ई. में एक शाही घोषणा द्वारा मिसीसिपी, फ्लोरिडा, ऐलेगनीज और क्वेबेक जैसे पश्चिमी क्षेत्र रेड इंडियंस के लिये सुरक्षित कर दिये। फलतः उपनिवेशवासियों का प्रसार (पश्चिम की ओर) रुक गया और वे ब्रिटेन को अपना शत्रु मानने लगे। साथ ही सप्तवर्षीय युद्ध में ब्रिटेन द्वारा खर्च की गई व्यापक धनराशि को उपनिवेश से वसूल करने की कोशिश के तहत नए करों का रोपण किया गया तथा पहले से चले आ रहे जहाजरानी कानून, व्यापारिक कानून, शुगर एक्ट आदि कड़ाई से वसूल किये जाने लगे, किंतु उपनिवेशवासी इन करों का भुगतान करने के लिये तैयार न थे। संघर्ष अवश्यंभावी हो गया था।

 

 

इंग्लैंड द्वारा उपनिवेशों का आर्थिक शोषण

इंग्लैंड द्वारा किया जा रहा आर्थिक शोषण उपनिवेशों तथा मातृदेश के बीच पनपे असंतोष का प्रमुख कारण था। वाणिज्यवादी नीति के तहत इंग्लैंड उपनिवेशों के बाजार पर पूर्ण नियंत्रण चाहता था। अतः वह उपनिवेशों से कच्चे माल का आयात तथा तैयार माल का निर्यात करने लगा। अपने हितों की पूर्ति के लिये ब्रिटिश सत्ता ने कई कानूनों का निर्माण किया, जिनमें से प्रमुख कानून निम्न हैं-

 

नौ-संचालन कानून

1651 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित नौ-परिवहन कानून के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने उपनिवेशों तथा अन्य देशों के बीच अपने व्यापारिक

नियंत्रण को सुदृढ़ करने का प्रयास किया। इस कानून द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया कि उपनिवेशों में व्यापार केवल इंग्लैंड, आयरलैंड या उपनिवेशों के जहाज़ों के माध्यम से ही किया जा सकता है। साथ ही यह व्यवस्था भी की गई कि ब्रिटेन के लिये आवश्यक सभी प्रकार के कच्चे माल बिना ब्रिटेन के बंदरगाहों पर लाए और उपनिवेशों से दूसरे स्थान पर निर्यात नहीं किये जाएंगे। इसके परिणामस्वरूप इंग्लैंड के पोत निर्माण उद्योग के साथ ही वहाँ के व्यापारी वर्ग को भी लाभ मिला। इसी प्रकार 1663 ई. में एक अन्य नौ परिवहन कानून द्वारा यह प्रावधान था कि यूरोप से अमेरिकी उपनिवेशों में निर्यात किया जाने वाला माल पहले इंग्लैंड के बंदरगाहों पर लाया जाएगा। इस कानून से भी ब्रिटिश व्यापारियों को अत्यंत लाभ हुआ। वस्तुत ये सभी कानून उपनिवेशों के लिये बेहद अन्यायपूर्ण थे।

 

 

अमेरिकी क्रांति के  परिणाम

विश्व इतिहास में अमेरिकी क्रांति एक महत्त्वपूर्ण घटना सिद्ध हुई। पश्चिमी गोलार्द्ध में विशाल प्राकृतिक संपदा से युक्त एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना एक क्रांतिकारी परिवर्तन की सूचना थी किंतु प्रारंभ में यूरोपीय देशों ने इसके महत्त्व को समझने में भूल कर दी, क्योंकि उनके हिसाब से ये बस्तियाँ बेहद कमज़ोर एवं विभाजित थीं तथा इनका राष्ट्र के रूप में संगठित होना अत्यंत दुष्कर था, परंतु इन नव-स्वतंत्र अमेरिकीबस्तियों के पक्ष में संभवतः सबसे महत्त्वपूर्ण बात थी- यूरोप से इनकी भौगोलिक दूरी, जिसके फलस्वरूप अमेरिकी लोग प्रत्येक बाहरी हस्तक्षेप थे, जिससे से मुक्त होकर अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिये स्वतंत्र थे। अतः कई अवसरों पर मु‌ट्ठी भर अमेरिकी राजनेताओं ने मिलकर ऐसे निर्णय लिये जो आने वाले समय में न केवल अमेरिका बल्कि यूरोप एवं संपूर्ण विश्व को प्रभावित करने वाले थे

कार्ल. एल, बेकर के अनुसार, “अमेरिका की क्रांति एक नहीं अपितु दो क्रांतियों का सम्मिलन थी। पहली ‘बाह्य क्रांति’ थी, जिसके तहत उपनिवेशों में ब्रिटेन के विरुद्ध विद्रोह किया गया, जिसका कारण उपनिवेशों एवं ब्रिटेन के मध्य आर्थिक हितों का संघर्ष था। दूसरी. ‘आंतरिक क्रांति’ थी, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता के पश्चात् अमेरिका के भविष्य की रूपरेखा तैयार करना था।”

 

अमेरिका पर प्रभाव

क्रांति ने अमेरिका को एक नया जीवन दिया, नए जन्मे अमेरिका ने जनतंत्र, गणतंत्रवाद, संविधानवाद और संघवाद जैसे 4 महत्त्वपूर्ण राजनीतिक आदशों को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। यद्यपि विश्व इन शब्दों से पहले भी अपरिचित नहीं था, परंतु अमेरिका ने इसका एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। गणतंत्र की स्थापना, प्रतिनिधि सरकार की प्रणाली तथा संविधान के निर्माण ने दुनिया को यह जता दिया कि राजतंत्र/राजाओं और राजकुमारों के दिन अब लद चुके हैं।

अमेरिकी क्रांति ने अमेरिकी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को भी गहरे रूप में प्रभावित किया। इस नई सामाजिक अवस्था में परंपरा, धन एवं अधिक परंपरागत सांपत्तिक अधिकारों की समाप्ति, टोरियों की अकूत संपत्ति का विघटन तथा एंग्लिकन चर्चों की समाप्ति जैसे कदमों ने जनतंत्र की आधारशिला को काफी मजबूत बना दिया था। प्रत्येक व्यक्ति को पूजा और आराधना की पूर्ण स्वतंत्रता देकर धर्मनिरपेक्षता को व्यवहार में लाया गया।

 

शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए अमेरिकी समाज एवं बुद्धिजीवियों

द्वारा स्वतंत्र सार्वजनिक स्थलों पर आम जनता की प्रशिक्षा की मांग की गई। 1782 ई. में न्यूयॉर्क के तत्कालीन गवर्नर जॉर्ज क्लिंटन ने कहा था, “जहाँ सर्वोच्च नौकरियाँ प्रत्येक नागरिक के लिये उपलब्ध हैं, उस स्वाधीन राज्य की सरकार का यह विशेष दायित्व है कि उस स्तर के साहित्य का विद्यालयों तथा विशेष संस्थाओं द्वारा प्रचार होना चाहिये, जो जन-संस्थाओं की स्थापना के लिये आवश्यक है।” जन-शिक्षा पर बल देते हुए थॉमस जेफरसन ने भी लिखा है- “मैं आशा करता हूँ कि सब चीजों से अधिक प्राथमिकता जन-साधारण की शिक्षा को दी जाएगी क्योंकि यह सिद्ध करता है कि जनता की सुबुद्धि पर ही स्वाधीनता के उचित स्तर को सुरक्षित रखा जा सकता है।”

 

सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों की भाँति ही अमेरिकी क्रांति के आर्थिक प्रभाव भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। क्रांति ने पूंजीवादी व्यवस्था के मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्त कर उसके विकास को प्रोत्साहन दिया। क्रांति ने अमेरिका के उद्योगों को दो रूपों में प्रभावित किया। प्रथम-अमेरिकी उद्योग अब ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए व्यापारिक प्रतिबंधों से मुक्त हो गए थे, द्वितीय-युद्ध के समय ब्रिटेन से वस्तुओं का आयात बंद हो जाने के कारण अमेरिकी उपनिवेशों के उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन मिला। स्वदेशी वस्त्र उद्योग का तो इतना विकास हुआ कि सूत कातने और वस्त्र बुनने का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर घर-घर किया जाने लगा।

 

 

अमेरिकी क्रांति की प्रकृति/स्वरूप

निस्संदेह अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम विश्व की एक महानतम घटना है, किंतु इसके स्वरूप को लेकर विभिन्न इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेरिकी क्रांति के स्वरूप को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है-

 

क्रांति एवं स्वतंत्रता संग्राम के रूप में

अमेरिकी उपनिवेशों के स्वतंत्रता संग्राम को दो चरणों में बांटकर न देखा जा सकता है। इसका प्रथम चरण 1762-72 ई. तक रहा, जिसमें र औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई तथा ब्रिटिश साम्राज्य र के अधीन रहते हुए ही आंतरिक सुधारों पर बल दिया गया। 1772 ई. के नो बाद इसका दूसरा चरण प्रारंभ होता है, जिसे स्वतंत्रता संग्राम के चरण नी के रूप में जाना जाता है। इस चरण में अमेरिकी उपनिवेशों के नेताओं द्वारा न केवल कर लगाने के अधिकार को चुनौती दी गई, बल्कि यह घोषित भी किया गया कि स्वयं ब्रिटिश साम्राज्य ही सभी समस्याओं की अन जड़ है और उसे उखाड़ फेंकना ही अमेरिकी उपनिवेशों की मुक्ति का एकमात्र रास्ता है। इस प्रकार अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की प्रक्रिया क्रांति से शुरू हुई तथा इसकी परिणति अमेरिकी स्वाधीनता के रूप में हुई। वस्तुतः इसे क्रांति मानने का अहम कारण यह था कि आधुनिक विश्व इतिहास के परिप्रेक्ष्य में इसके द्वारा ही राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक ि एवं वैचारिक पहलुओं पर आमूलचूल परिवर्तन लाया गया।

 

वर्गीय संघर्ष

अमेरिकी क्रांति में वर्गीय संघर्ष का भी थोड़ा सा पुट विद्यमान था। इसमें एक ओर ब्रिटेन का कुलीन शासक वर्ग था, जिसके समर्थन में प्रजातंत्र के आगमन एवं उसकी प्रतिक्रियाओं से भयभीत अमेरिकी धनी एवं कुलीन वर्ग खड़ा था, तो दूसरी ओर अमेरिका के श्रमिक, कारीगर एवं शिल्पी जैसे मध्यवर्ग के लोग थे, जो अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के पक्षधर थे।

 

प्रगतिशील स्वरूप

अमेरिकी क्रांति के प्रगतिशील स्वरूप की झलक क्रांति के पश्चात् की शासन प्रणाली और अमेरिकी संविधान में स्पष्ट दिखाई पड़ती है जिसमें संविधानवाद, गणतंत्रवाद, धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना पर विशेष बल दिया गया था।

 

लैंगिक समानता के रूप में

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। महिलाओं ने न केवल गुप्तचर के रूप में कार्य किया, बल्कि शस्त्र निर्माण कार्य में भी भरपूर सहयोग दिया। क्रांति में स्त्रियों की भागीदारी को देखते हुए लॉर्ड कॉर्नवालिस ने भी कहा था कि “यदि हम लोग उत्तरी अमेरिका के सभी पुरुषों को खत्म भी कर दें तो औरतों को जीतने के लिये हमें लड़ना ही पड़ेगा।”

 

 

Other Useful Links:- 

फ्रांसीसी क्रांति के कारण और परिणाम

 

 

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